सफर

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By Vivek Murarka

रास्तों को अपना हमसफर बना लो,
इन वादियों को अपना घर बना लो,
ज़िन्दगी बहुत मुश्किल से मिलती है,
क्यूं ना तुम कुछ पल अपने साथ बिता लो।

पहाड़ों में खो जाओ तुम,
कोइ साथ हो न हो, ये घाटियां तुम्हारा साथ देंगी।
कभी अकेला तुझे मेहसूस न होगा,
क्योंकि ज़ोर से आवाज़ दो, तो ये पहाड़ भी तुमसे बात करेंगे।

मंज़िल चाहे कितनी ही ऊंची हो,
इन रास्तों में चाहे जितनी मुश्किल आए,
तेरे क़दम क्यों न फिसले और डगमगाए,
तेरे हौंसले में कभी ना कोई कमी आए।

गुमराह वो नहीं जिसे रास्तों का ज्ञान न हो,
गुमराह वो नहीं जिसके घर का ठिकाना न हो,
गुमराह वो नहीं जिसे मन्जिल की पहचान न हो,
गुमराह वो है जिसे ख़ुद के ज़िन्दा होने का एहसास नहीं।

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