जिंदगी पर कुछ मशहूर शायरों के अश’आर

कोई वक़्त बतला कि तुझ से मिलूँ मिरी दौड़ती भागती ज़िंदगी
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zindagi shayari

मौत का भी इलाज हो शायद

ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी


कुछ तो है बात जो आती है क़ज़ा रुक रुक के

ज़िंदगी क़र्ज़ है क़िस्तों में अदा होती है

क़मर जलालाबादी


ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं

पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है

बशीर बद्र


सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ

ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ

ख़्वाजा मीर दर्द

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
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जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं

ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से

नज़ीर सिद्दीक़ी


इश्क़ के मज़मूँ थे जिन में वो रिसाले क्या हुए

ऐ किताब-ए-ज़िंदगी तेरे हवाले क्या हुए

अबु मोहम्मद सहर


क़ब्रों में नहीं हम को किताबों में उतारो

हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरें हैं

एजाज तवक्कल


मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए

कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से

ख़्वाजा मीर दर्द

मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से ख़्वाजा मीर दर्द
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ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब

मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना

ब्रिज नारायण ‘चकबस्त’


क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं

मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ

मिर्ज़ा ग़ालिब


कहानी है तो इतनी है फ़रेब-ए-ख़्वाब-ए-हस्ती की

कि आँखें बंद हूँ और आदमी अफ़्साना हो जाए

सीमाब अकबराबादी


किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को

काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के

आदिल मंसूरी

किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को  काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
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ज़िंदगी इक हादसा है और कैसा हादसा

मौत से भी ख़त्म जिस का सिलसिला होता नहीं

जिगर मुरादाबादी


मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं

शकील बदायुनी


सुनता हूँ बड़े ग़ौर से अफ़्साना-ए-हस्ती

कुछ ख़्वाब है कुछ अस्ल है कुछ तर्ज़-ए-अदा है

असग़र गोंडवी


तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ

छूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ

साग़र आज़मी

तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ  छूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ
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अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया

मैं ज़िंदगी का देते देते सूद ख़त्म हो गया

फ़रियाद आज़र


ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी

तू ने ख़्वाबों के सिवा मुझ को दिया भी क्या है

अख़्तर सईद ख़ान


सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के

ज़िंदगी जीते हैं कुछ लोग ख़सारा कर के

हाशिम रज़ा जलालपुरी


कोई वक़्त बतला कि तुझ से मिलूँ

मिरी दौड़ती भागती ज़िंदगी

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

कोई वक़्त बतला कि तुझ से मिलूँ  मिरी दौड़ती भागती ज़िंदगी
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अगर है ज़िंदगी इक जश्न तो ना-मेहरबाँ क्यों है

फ़सुर्दा रंग में डूबी हुई हर दास्ताँ क्यों है

अमीता परसुराम मीता


क्या चाहती है हम से हमारी ये ज़िंदगी

क्या क़र्ज़ है जो हम से अदा हो नहीं रहा

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर


हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म

झटके दे कर तार तोड़े जा रहे हैं साज़ के

नातिक़ गुलावठी


आख़िर इक रोज़ तो पैवंद-ए-ज़मीं होना है

जामा-ए-ज़ीस्त नया और पुराना कैसा

लाला माधव राम जौहर

आख़िर इक रोज़ तो पैवंद-ए-ज़मीं होना है  जामा-ए-ज़ीस्त नया और पुराना कैसा
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हम लोग तो मरते रहे क़िस्तों में हमेशा

फिर भी हमें जीने का हुनर क्यूँ नहीं आया

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र


अजब तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी हम ने

जहाँ में रह के न कार-ए-जहाँ को पहचाना

वज़ीर आग़ा


बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में

मरने के ब’अद हाथ से मोती बिखर गए

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी


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