
बंजर मन और बंजर जिंदगी को क्या कभी कोई बारिश छू कर हरा-भरा कर सकेगी?
रेखा खन्ना दिल के एहसासों को शब्दों में ढाल कर पन्नों पर उकेरने करने की कोशिश करती हैं।
बंजर मन और बंजर जिंदगी को क्या कभी कोई बारिश छू कर हरा-भरा कर सकेगी?
By Rekha Khanna मैं लिख रही हूंँ किरदार कोईशायद ज़िदा मिल जाए कहींहर शख़्स मुर्दा है भीतर सेकिरदार में जान […]
“One person of integrity can make a difference” are the powerful words of Elie Wiesel. Author of ‘Night‘ which describes […]
‘जीवन तरस गया उजले उजाले देखने को /
अफसोस क़फ़स में कोई खिड़की नहीं है
‘आना, पर खाली हाथ आना, नमक संग मत लाना / ज़ख्मों को सहलाना पर नमक छिड़क कर ना जाना’
हम नदी के दो किनारे थे। जो कभी नहीं मिल सकते थे पर ये नदी समय से पहले ही कुछ दूर तक साथ चल कर ही सूख गई और पीछे छोड़ गई अपने बहाव के चंद अध-मिटे निशान।
By Rekha Khanna जैसे एक दिल से फूटती हैं सौ नदियां प्रेम की और मिलना चाहती हैं दूजे दिल के […]
By Rekha Khanna “नारी” — क्या मतलब है “नारी” शब्द का ? कभी सोचा है औरत के लिए नारी शब्द […]