
‘जीवन तरस गया उजले उजाले देखने को /
अफसोस क़फ़स में कोई खिड़की नहीं है
‘जीवन तरस गया उजले उजाले देखने को /
अफसोस क़फ़स में कोई खिड़की नहीं है
By Aditi ग़लत को ग़लत क्या बता दियानजरों से सबकी उतर गए हम कल तक थे जो गहरे रिश्ते नातेआज […]
By S. Aarfa Khalique दुआ करुंगी ख़ुदा से,ये दूरियों का सिलसिला यूं ही बरक़रार रहे,करके जो गया था ज़ख्मी मुझे,वो […]
By Aditi वो कोमल नन्ही कली बाबा के आंगन कीउसके नन्हे पांवों को बाबा होठों से चूमा करते थेकंधे पर […]
By Yash Bhopte कौन था मैं ! कौन हूं ! इस प्रश्न से मैं मौन हूं,इसका मुझे उत्तर मिला, राही […]
By Anuradha Rani नज़रों को बयां करने नहीं देतीहै दर्द का समुंदर पर बहने नहीं देतीकट रही है ज़िंदगीसांसे भी […]
By Aditi सिमट गई हैं यादें सारीदीवारों की तस्वीरों पर खाली कमरा बेजान-साबेरंग-सी उसकी दीवारें अरमानों से भरी कभीउस कमरे […]
By Shalini Singh कितने अजीब होते हैं ये दायरे भी,जो कभी दो दिलों को मिला कर जुदा कर देते हैं,या […]