By Sachchidananda Hirananda Vatsyayan ‘Agyeya’ मैंने देखाएक बूँद सहसाउछली सागर के झाग सेरँगी गई क्षण भरढलते सूरज की आग से। मुझको दीख गया :सूने विराट् …
Agyeya
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मन बहुत सोचता है
कवि – अज्ञेय मन बहुत सोचता है कि उदास न होपर उदासी के बिना रहा कैसे जाए? शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी …