दो किनारे

Do kinare - Rekha Khanna
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By Rekha Khanna

अच्छा सुनो! कभी नदी के दो किनारों को गौर से देखा है? हाँ! वही किनारे जो ताउम्र साथ तो चलते हैं पर कभी मिल नहीं पाते हैं, पर कभी एक दूसरे का साथ भी नहीं छोड़ते हैं। बस एक साथ मीलों तक चलते ही रहते हैं और उन दो किनारों के बीच चलता है उनका प्यार, पानी के रूप में। हांँ उनकी मोहब्बत, पानी के रूप में निरंतर बहती हुई उनके साथ मीलों तक चलती है बिना रूके, बिना किनारों को तोड़ते हुए।

अच्छा बताओ तो, कभी सोचा है कि ये किनारे क्यूँ नहीं मिलते हैं आपस में? नहीं सोचा ना कभी?
मैं बताऊँ?… सोचो अगर ये दोनों कभी एक हो गए तो क्या होगा? जब दोनों किनारे मिल जाएंगे तो इनके बीच पानी बनकर जो मोहब्बत बह रही है ना, वो बहना रूक जाएगी और धीरे धीरे उस रूके हुए पानी में काई लग जाएगी।

मोहब्बत भी ऐसी ही होती है ना … जब तक एक दूसरे के दिल में बहती रहती है तब तक ताज़गी लिए होती है और जब बहना रूक जाता है तो धीरे-धीरे सूखने लगती है और जिस दिन पूरी सूख जाती है तो हाथों में सिर्फ सूखी रेत ही बचती है।

क्या करोगे उस रेत का? वो तो जितनी जोर से मुठ्ठी में भींचोंगे उतनी ही तेजी से फिसल कर हाथों से निकल जाएगी।

कभी कभी दो किनारे मीलों तक साथ चलते हैं पर उनकी मोहब्बत बीच राह में ही दम तोड़ देती है और मोहब्बत रूपी पानी सूख जाता है, हमेशा के लिए। फिर चाहे कितनी भी बारिशें क्यूंँ ना हो जाएं, वो किनारे सूखे के सूखे ही रह जाते हैं। ठीक ऐसे ही जैसे हमारे बीच की मोहब्बत सूख कर मर गई। हम भी दो किनारों की तरह थे जो कभी मिल नहीं सकते थे फिर भी कहीं-न-कहीं मोहब्बत जिंदा थी, पर अब लगता है धीरे धीरे सूख चुकी है दो दिलों के बीच बहने वाली‌ नदी।

अब सिर्फ यादों की आंँधियों से रेत के बवंडर उड़ते हैं दिलो-दिमाग में और आंँखों को आँसूओ के सैलाब के हवाले कर जाते हैं। हम दोनों के दिल, दो किनारों की तरह, पर तुम तो मीलों दूर तक साथ चल ही नहीं पाए। बीच राह में ही बेवजह किनारे को छोड़कर बहाव को न जाने किस दिशा की ओर मोड़ कर ले गए। और मैं उस टूटे हुए किनारे को जोड़ने की तमाम कोशिशों के बाद हार मान गई और अब कोई कोशिश नहीं करना चाहती, क्योंकि मुझे पता है कि किनारा अगर जुड़ भी गया तो उसकी नींव मजबूत नहीं होगी और वो बार बार टूटता ही रहेगा।

हाँ! मानती हूँ सूखेपन से जो दरारें उभर आती हैं वो समय के साथ और भी गहरी होती जाएंँगी और तकलीफ़ बढ़ती ही चली जाएगी। इन दरारों को सिर्फ नमी ही गहरा होने से रोक सकती है। पर जब तल ही सूख जाए और बारिशें भी बरसने से मना कर दे तो नमी कहांँ से लाई जाए? बोलो ना? नमी कहाँ से ले कर आऊँ, जो सूखी पपड़ियों को हटा कर ज़मीं को फिर से हरा-भरा कर दे?

नहीं! अब और कोशिश नहीं, क्योंकि जानती हूँ चाहे कितनी भी कोशिश कर लूँ पर एक बार जो नींव हिल जाती है अपनी जगह से, वो फिर कभी मजबूत नहीं होती है। और उस कमजोर नींव पर बनाई इमारत कभी भी भर-भरा कर गिर सकती है।

दो किनारे, चाहे नदी के हो यां फिर कभी एक ना हो सकने वाले दिल के, कभी नहीं मिलते हैं। यही सत्य है। एक के दिल में भी अगर दूरी जन्म ले ले तो मोहब्बत दम तोड़ने लगती है।उस मोहब्बत को एक ना एक दिन मरना ही पड़ता है।

हम नदी के दो किनारे थे। जो कभी नहीं मिल सकते थे पर ये नदी समय से पहले ही कुछ दूर तक साथ चल कर ही सूख गई और पीछे छोड़ गई अपने बहाव के चंद अध-मिटे निशान।

रेखा खन्ना

रेखा खन्ना दिल के एहसासों को शब्दों में ढाल कर पन्नों पर उकेरने करने की कोशिश करती हैं।

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Featured Image: https://unsplash.com/@jasonpatricksc

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