Hindi Diwas : Five Hindi Poems You Must Read

Five Must Read Hindi Poems
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Every year, 14 September is celebrated as National Hindi Day in India. Here are 5 must read Hindi poems to bring you closer to the Hindi language and acquaint you with some of the treasures of Hindi Literature:

अंतिम उंचाई | कुंवर नारायण

कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब
अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं,
हमारे चारों ओर नहीं।
कितना आसान होता चलते चले जाना
यदि केवल हम चलते होते
बाक़ी सब रुका होता।
मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को
दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में
अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है।
शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं
कि सब कुछ शुरू से शुरू हो,
लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं।
हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती
कि वह सब कैसे समाप्त होता है
जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था
हमारे चाहने पर।
दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए
जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे—
जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में
जिन्हें तुमने जीता है—
जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे
और काँपोगे नहीं—
तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं
सब कुछ जीत लेने में
और अंत तक हिम्मत न हारने में।

तुम्हारे साथ रहकर | सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गई हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गई है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकांत नहीं
न बाहर, न भीतर।
हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने छोटे हो गए हैं
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
आशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक कि घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार पर
चढ़कर चले जाने का।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
संभावनाओं से घिरे हैं,
हर दीवार में द्वार बन सकता है
और हर द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुज़र सकता है।
शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है,
भुजाएँ अगर छोटी हैं,
तो सागर भी सिमटा हुआ है,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।

तू ज़िंदा है तो | शंकर शैलेंद्र

तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत पे यक़ीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।
ये सुबह-ओ-शाम के रँगे हुए गगन को चूमकर
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूम कर!
तू आ मेरा सिंगार कर तू आ मुझे हसीन कर।
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।

ये ग़म के और चार दिन सितम के और चार दिन
ये दिन भी जाएँगे गुज़र गुज़र गए हज़ार दिन
कभी तो होगी इस चमन पे भी बहार की नज़र।
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।

हमारे कारवाँ का मंज़िलों को इंतज़ार है
ये आँधियों की बिजलियों की पीठ पर सवार है
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर।
हज़ार रूप धर के आई रात तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर
नई सुबह के संग सदा मिली तुझे नई उमर।
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।

जुगनू | हरिवंशराय बच्चन

एक

अँधेरी रात में दीपक
जलाए कौन बैठा है?

उसी ऐसी घटा नभ में
छिपे सब चाँद औ’ तारे,
उठा तूफ़ान वह नभ में
गए बुझ दीप भी सारे;

मगर इस रात में भी लौ
लगाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक
जलाए कौन बैठा है?

दो

गगन में गर्व से उठ-उठ,
गगन में गर्व से घिर-घिर,
गरज कहती घटाएँ हैं,
नहीं होगा उजाला फिर;
मगर चिर ज्योति में निष्ठा
जमाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक
जलाए कौन बैठा है?

तीन

तिमिर के राज का ऐसा
कठिन आतंक छाया है,
उठा जो शीश सकते थे
उन्होंने सिर झुकाया है;

मगर विद्रोह की ज्वाला
जलाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक
जलाए कौन बैठा है?

चार

प्रलय का सब समाँ बाँधे
प्रलय की रात है छाई,
विनाशक शक्तियों की इस
तिमिर के बीच बन आई;

मगर निर्माण में आशा
दृढ़ाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक
जलाए कौन बैठा है?

पाँच

प्रभंजन, मेघ, दामिनि ने
न क्या तोड़ा, न क्या फोड़ा,
धरा के और नभ के बीच
कुछ साबित नहीं छोड़ा;

मगर विश्वास को अपने
बचाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए
कौन बैठा है?

छह

प्रलय की रात में सोचे
प्रणय की बात क्या कोई,
मगर पड़ प्रेम बंधन में
समझ किसने नहीं खोई,

किसी के पंथ में पलकें
बिछाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक
जलाए कौन बैठा है?

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया | विनोद कुमार शुक्ल

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे।

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