By Aditi
वो कोमल नन्ही कली बाबा के आंगन की
उसके नन्हे पांवों को बाबा होठों से चूमा करते थे
कंधे पर बिठाकर उसको पूरा गांव घुमाया करते
बाबा को उसकी बिटिया दुनिया की दौलत से भी अजीज थी
अपनी बिटिया का चढ़ता ताव देख बाबा पूरी रात ना सोते थे
अंधेरे में बाबा उसका रोशन संसार थे
गिरने से संभालता उसे बाबा का प्यार था
मां से बनती नहीं थी, सर पर चढ़ाने वाले बाबा ही थे
बाबा अपनी बिटिया को अपने ही रंग में ढाल रहे थे
गिरते पड़ते बाबा की कली अब चलने लगी थी
जमाने से बचाकर रखा था अब तक बाबा ने अपनी निगरानी में उसे
एक दिन राह में अकेली देख
कुछ अनजान चेहरे उसके करीब आ गए
जिस बिटिया पर बाबा ने कभी धूप की किरणें तक ना पड़ने दी
आज वो चेहरे काली घटा से उसपर छा गए
उस फूल को उस दिन बड़ी बेरहमी से तोड़ा गया
वो रो रही थी, चिल्ला रही थी, सहायता की गुहार लगा रही थी
खून से सना उसका बदन कांप रहा था
वो दर्द में थी, लेकिन उसकी आवाज़ सुनने वाला कोई ना था
नब्ज़ ठंडी, सांसे थमने लगी थी उसकी
रात के साए में लाश उसकी बर्फ़ सी जम गई थी
बाबा बिटिया के इन्तज़ार में पलके बिछाए बैठे थे, उसकी बाट में पूरा शहर छान आए थे
फिर सुबह खबर मिली कि उनकी बेटी को कुछ दरिन्दों ने मार डाला
सुन ये खबर! मां का दर्द उसके आसुओं में बह रहा था
मां विलाप कर रही थी बेटी की ये दुर्दशा देखकर
बाबा खामोश एक कोने में खड़े, चेहरा अपनी बेटी का देख रहे थे
बेटी उनकी बेजान-सी फर्श पर पड़ी थी
ना कुछ बोल रही थी, ना सुन रही थी
आखें बंद किए गहरी नींद में सो रही थी
बाबा उसका ख़ुद को कोस रहा था क्यूं मांगा उसने दुआओं में ये सोच रहा था
बाबा उससे किया वादा पूरा ना कर सके
अपनी बिटिया को उन हैवानो से बचा ना सके।
Aditi, a silent, quiet and true soul, who finds true peace by expressing herself through poetry, wants to work for the betterment of the country and to spread happiness and positivity through her work.
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