By S. Aarfa Khalique
अपनों से उम्मीदें करनी छोड़ दी है मैंने,
क्योंकि ग़म से बेहतर मौक़ा हमारी ज़िन्दगी में नहीं आता,
ऐसे वक़्त में अपनों की परख़ हो ही जाती है,
हमारी ज़िन्दगी में अक्सर अनजान चेहरे वाले मुखॉटें के पीछे अपने छुपे होते हैं,
और अपने लोग तो अपनापन का मुखौटा पहनकर भी, अपनेपन का एहसास नहीं दिला पाते।
S. Aarfa Khalique, from Jharkhand, India, has done post graduate diploma in management.