By Yash Bhopte
कौन था मैं ! कौन हूं ! इस प्रश्न से मैं मौन हूं,
इसका मुझे उत्तर मिला, राही को जैसे घर मिला।
जीवन की इन अठखेलियों से अंजान हूं मैं,
समझूं भी तो कैसे आखि़र इंसान हूं मैंं !
दुनिया क्या सोचे हर पल यहीं सोचा करता हूं,
चंद नोटों कि खातिर अपनी भावनाएं बेचा करता हूं।
एक ऐसी ज़िन्दा, चलती फिरती दुकान हूं मैं,
समझूं भी तो कैसे आखि़र इंसान हूं मैंं !
वक़्त पड़े तो परिस्थितियों में ढल जाया करता हूं,
अपनी इच्छाओं को दफ़न कर मैं सम्भल जाया करता हूं।
एक ऐसा वेदनाओ में डूबा पड़ा शमशान हूं मैं,
समझूं भी तो कैसे आखि़र इंसान हूं मैं !
Yash Bhopte, from Madhya Pradesh, India, is a high school student, who loves writing and sketching.
Instagram Handle : @Kalam_ka_sikandar
Wow,bahut hi amazing poem hai ye💯