By Anuradha Rani
नज़रों को बयां करने नहीं देती
है दर्द का समुंदर पर बहने नहीं देती
कट रही है ज़िंदगी
सांसे भी कर्ज़दार हैं
ग़़ुलाम हूं बस इंतज़ार की
दिन तो बदल जाता है
मगर बहरूपिया है मन मेरा
चोट खाकर भी कहता है
कि ज़ख्म कोई मिला नहीं
ज़िंदगी तू अब तो मुझे गले लगा
है हंसी झूठी मेरी
मेरी मुस्कुराहट पर न जा
एक मोहलत ना मिली
बहती गईं नदियों की धारा
मैं कश्ती लिए बस तूफ़ानों से गुजरी
कहीं मिला नहीं मुझे किनारा
कितने चेहरों से कहा सुन लो मुझे एक बार
है मुश्किल में जान मेरी
मगर परिंदो की तरह उड़ गए सब
लगाए तूफ़ानों का पहरा
ज़िंदगी तू और ना सता
है हंसी झूठी मेरी
मेरी मुस्कुराहट पर न जा
कि अब दम घुट रहा है
जहां आ पहुंची हूं मैं
मछली बिन तालाब के है
रुक जाएगी उसकी सांसे
जो जीने को दो घूंट ना मिला
दे दो वापस उसे जो शहर उसका था
लौटा दो उसके सपने जिसके लिए वो ज़िंदा था
देखो अब ज्यादा वक़्त नहीं
उसके वजूद का मिटना उसके अस्तित्व की कहानी है
मगर जो मरा नहीं उसे मार देना इस दुनिया की रीत पुरानी है
कि अब जो बचा नहीं तो खता किसकी है
एक आग उठी और एक आह सिसकी है
बता ज़िंदगी क्या अब भी कुछ कहना बाक़ी है
मेरे लिए तो एक उम्मीद का होना काफ़ी है
बस ज़िंदगी अब और ना सता
है हंसी झूठी मेरी
मेरी मुस्कुराहट पर न जा
Anuradha Rani, an author, a poet and bibliophile, believes in the power of words in bringing change and impacting lives. She counts food and music as her second love, poetry being the first. A firm believer of the adage “Pen is mightier than Sword”, she believes that if her words change even one person in a positive way, she will consider her mission successful.
Instagram Handle : @anuradharani46
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