By Aditi
सिमट गई हैं यादें सारी
दीवारों की तस्वीरों पर
खाली कमरा बेजान-सा
बेरंग-सी उसकी दीवारें
अरमानों से भरी कभी
उस कमरे की दीवारें थीं
तन्हाईयों का आज वहां
मंंज़र है पसरा पड़ा
नज़र ना आती अब वहां
भरी महफिल खुशियों की
बेजान-सा ये खाली कमरा
दास्ताँ एक बयां कर रहा
कमरे में जैसे छाया हुआ
एक सुना-सा मंजर है . . .
हर कोने में ख़ामोशी है
जहां कभी बहारे थीं
धूमिल हो गई रौनकें
खुशियां बिखर गईं
खाली कुर्सियां कर रही
वक़्त का इन्तज़ार हैं
खोया-सा लगता है
कमरा अब ये बेजान सा
खोयी-सी लगती हैं
खुशियां इन दीवारों की
शायद ढूंढ़ रहा है कमरा
क़दमों के निशां किसी के
खुला दरवाजा इन्तज़ार में है
किसी के लौट आने के
बेजान कमरा यादों से भरा
Aditi, a silent, quiet and true soul, who finds true peace by expressing herself through poetry, wants to work for the betterment of the country and to spread happiness and positivity through her work.
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