By Shalini Singh
तुम्हें जिसने दुनिया में लाया है,
आज ज़ात उसी की बदनाम करते हो,
ख़ुद को एक मर्द कहकर तुम,
आज एक नारी पे वार करते हो।
हर मोड़ पर वो ज़रूरत है तुम्हारी,
इस बात को तुम क्यूं ना स्वीकार करते हो,
जन्म से मरण तक हर दास्तां उसी से है,
फ़िर क्यूं इस बात से इतने अंजान बनते हो।
तुम्हीं को जन्म देकर, तुम्हीं को पूजती है,
रिश्तों का बन वो बंधन, तुम्हीं को सींचती है,
फ़िर बेज़्ज़ती तुम उसकी क्यूं सर-ऐ-‘आम करते हो,
क्यूं खोकर इंसानियत, हैवानियत सा काम करते हो।
डराया है उसे तुमने,वो तुम्हीं से आज सहमी है,
तुम्हारी इज्ज़त के खातिर ही वो घूंघट में घर में ठहरी है,
इस बलिदान को तुम केवल नाम धर्म का ही देते हो,
तुम्हें शर्म नहीं आती तुम जो बात ये कहते हो।
धर्म उसका है जो गर सब,
फ़र्ज़ तेरा भी कन्ही है,
वक़्त रहते ही समझ ले,
उसी (नारी) से तू यहीं है।
छांव ममता की वो है देती,
लाज राखी की तुम तो रख लो,
पूजती है पत्नी बनकर,
बस मान उसका कर लो।
बाप उसका भी है कोई,
बेटी तेरी भी कोई है,
दर्द देते वक़्त उसको,
तूने सोचा क्यूं नहीं ये।
दो प्यार कम भले ही,
इज़्ज़त को कम न करना,
भूखी जिस्म की नहीं वो,
साथी बनके संग रहना।
Shalini Singh, from Maharashtra, India, is a student and loves to write poetry.
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