पतझड़ का पीलापन

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By Rekha Khanna

पीला रंग चढ़ा कर जोगी बन चला हूंँ
हरा था कभी अब मोक्ष के द्वार खड़ा हूंँ

लहराता था शाख पर जवानी के जोश में
अब बूढ़ा हो कर जीर्णोद्धार पर खड़ा हूंँ

हवा का हल्का सा झोंका भी लगे तेज आंधियों सा
छूट जाएगी शाख इसी सोच में शाख पर अड़ा हूंँ

लाल दिल बन शाख पर मैं कभी उगा था
हरे रंग की बेवफ़ाई से अब पीला पड़ा हूंँ

था कभी पेड़ की शान अब बोझ बना हूंँ
शाख ने भी किया तिरस्कार अब जमीं पर सड़ा हूंँ

पत्ते की जिंदगी और मौसम का अटूट रिश्ता है
पुनर्जन्म के आश्वासन पर पतझड़ की भेंट चढ़ा हूंँ


जिंदगी भी कभी कभी उस पत्ते की तरह हो जाती है जो धीरे-धीरे पीला पड़ते हुए अपने गिरने का इंतजार करता है। पतझड़ उसे, उसकी हरी-भरी शाख से जुदा होने की दस्तक देने लगता है।

यूं तो बहुत सी आंधियांँ और हवाओं के झंखड़ आए, पर वो शाख को मजबूती से पकड़ वहीं पर लगा रहा। पर पतझड़ जब आता है तो वही पत्ता ख़ुद-ब-ख़ुद शाख को छोड़ने का फैसला कर लेता है यां फिर ये कहूंँ कि शाख ही उसका साथ छोड़ देती है, ये कह कर कि अब तुम्हारा और बोझ सहन नहीं होता।

वो नन्हीं सी जान ये सुनकर न जाने किस एहसास को जीने लगती है और न जाने कौन सा ग़म उसे अंदर ही अंदर खाने लगता है कि वो धीरे धीरे अपना रंग बदल कर कुम्हलाने लगती है। पीलापन उस की रगो में समा कर उसे धीरे धीरे अपने वजूद को छोड़ने की सलाह देने लगता है और वो अपनी हरियाली, अपनी खुशियों से मुंँह मोड़ कर गिरने के इंतज़ार की घड़ियांँ गिनने लगती है।

जिंदगी भी ठीक उसी पत्ते के जैसी है। कभी कभी इसे भी पतझड़ का सामना करना पड़ता है। जब अपने, जो ठीक उसी शाख की तरह हैं, ये एहसास दिला देते हैं कि तुम बोझ से ज्यादा और कुछ नहीं और अब तुम्हारे भी झड़ने का वक्त आ गया है।

रिश्तों में भी पतझड़ की बहार एक बार ज़रूर आती है। तब जितना भी मजबूती से पकड़ने की कोशिश कर लो, हरी-भरी शाख का साथ छूट ही जाता है। कभी कभी पनपने से पहले ही मुरझा कर गिरना पड़ जाता है।

पर कभी जिंदगी के पतझड़ का पीलापन आपने देखा है? शायद हांँ या शायद नहीं। इसका जवाब वो बख़ूबी दे सकते हैं जिन्होंने इस पतझड़ का सामना किया हो या शायद कर रहें हों।

प्रकृति के रंग सिर्फ प्रकृति ही नहीं हम इंसान भी देखते हैं। दो दिल मिले तो बहार आई। आपसी झगड़ों से रिश्ते टूटे तो पतझड़ आया। जब मनमुटाव के कारण बातचीत बंद हुई तो सर्द मौसम की तरह ही दिल भी सर्द हो गया ।
कहते हैं ना break the ice and talk once again हांँ बस वही बर्फ़ जम जाती है और दूरियांँ दिलों में घर कर जाती हैं।

यूं तो पतझड़ ये भी संदेश लाता है कि नई कोंपलों के खिलने का आगाज़ हो रहा है और नया जीवन प्रकृति के रंगों को जीना चाहता है, हर मौसम के अनुभव को अपने में समा लेना चाहता है।‌ फिर धीरे धीरे शाख पर लाल दिल के रूप में नया जीवन उभरता है और फिर हरे रंग की खुशियों के दामन को ओढ़ कर लहराने लगता है। और एक बार फिर वो कालचक्र की कठपुतली बन उसके अनकहे इशारों पर नाचने लगता है।

यही जीवन है और यही कालचक्र है जो ये कहता है —

गर आई है हरियाली तो पीलापन भी उसके पीछे पीछे जरूर आएगा

शायद पीले रंग को हरे रंग से इश्क है जो उसे ढूंँढते-ढूंँढते कई मौसमों का सामना करते हुए उस तक बेखौफ पहुंँच ही जाता है।

Rekha Khanna tries to mold feelings into words, each time pouring a new passion on the paper.

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