By Urmi Joshi
मुझे इस इंसानी दुनिया की सोच समझ नहीं आती
इनके मुताबिक जहां लड़की और लड़का बस वहीं प्यार पाया जाता
मैनें पाया है प्यार वहां जहां जहां मैनें प्रकृति को पाया
मैनें पाया है प्यार बिल्कुल मेरी माँ के जैसा जहां जहां मैनें प्रकृति को देखा
मुझे तो इस प्रकृति की दुनिया से प्यार है बेशुमार है
कारण सिर्फ़ इतना की ये भेद की भाषा जाने ना
मुझे इस प्रकृति की दुनिया से प्यार है क्योंकि
धर्म जात पात के भेद को ये पहचाने ना
मुझे इस प्रकृति की दुनिया से प्यार है क्योंकि
इसकी नज़र में कोई ऊंच नीच वाला बरताव ना
मुझे इस प्रकृति की दुनिया से प्यार है क्योंकि
ये मुझे ये जताती ना की लड़कियां कमज़ोर होती है
मुझे इस प्रकृति की दुनिया से प्यार है क्योंकि
ये सभी को एक समान प्यार करना जानती है
इंसानी दुनिया का दोगलापन नहीं पहचानती है
मैनें तो प्यार पाया है प्रकृति के हर कण कण में
वो प्यार मैं पा जाती हूं जब जब मैं सांसे लेती हूं
मैनें तो प्यार पाया है इस वसुंधरा से
जो मुझे अपनी धरा से जोड़े रखती है
मैनें तो प्यार पाया है इन लहलहाती फसलों से
जो मुझे और सबको अपने पौष्टिक तत्वों से सन्तुष्ट बनाती है
मैनें तो प्यार पाया है जीवन के अमृत जल से
जो मेरी और सबकी तृष्णा मिटाती है
हां! मुझे इस प्रकृति की दुनिया से प्यार है बेशुमार है
Urmi Joshi loves to write poetry which reflects her love for the nature.
I love the perspective.
https://anchor.fm/connectraviji/episodes/ep-eq8umb
Listen your poem in my voice.