सफर सुकून का

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By Mansi

र वो पल जब कुछ खूबसूरत ज़ुबान से निकला मेरी,
कोशिश उसको कैद करने की करी,
सोचा याद उसे कर तुझे सुनाऊंगी
और मेरे दिल का सुकून तुझ तक पहुंचाऊंगी,

पर रुकता नहीं वो पल, पानी सा फिसल जाता है
और याद कर सुनाऊं भी तो कैसे, हर दूसरा पल जो कुछ नया लाता है,
ज़ुबान भी सिल जाते है और बातें मेरी मुझ तक रह जाती है,
कुछ ऐसे मेरा तुझे सुकून देने का ख़्वाब अधूरा ही रह जाता है

नाकामयाब कोशिशें मेरी, ज़हर में तब्दील मेरे सुकून को है कर देती,
सुकून तुझे ना दे सकी सज़ा है ये उसकी,
बेवफा जिंदगी लगती है जो पल-पल जीती है और मरती भी,
तरस सा आता है अब तो खुद की बेबसी पर ही

ज़िन्दगी के हर पल‌ के साथ बदल जाना है ज़रूरी,
पर आदत नहीं इसकी, बस फितरत है सबको कैद करने की,
दायरा हमारा छोटा बड़ा है और परछाईं को अपनी समझा है बड़ी,
मरे में जीने की आदत है, कैद जो ज़िन्दगी ना हो सकी

कोई रास्ता नहीं रहता चुप होने के सिवा जब साथ तेरा है मिलता,
पुराना जो पल है जा चुका, याद कर उसको बाँटा जा भी नहीं सकता,
अब नए पल के साथ हालात भी जो है बदल चुका,
तुम समझ ना पाओगे फासला जो सोच में हमारी काफी है लंबा,

बातें खत्म होती नहीं मेरी पर साथ तुम्हारे वो भी ठहर सी हैं जाती,
सुकून की तलाश है सबको और ख्याल ये है मेरा कि मेरी मौत का कारण वही बनेगी,
बयान नहीं हो सकती बीते वक्त की बातें वो अकेली सी,
यही वजह है जो अपनी नाकामयाबी पर हंसी सी है आती,

रास्ता एक ही बचता है के ज़ुबान सिल लूं अपनी,
पर फिर डर सा उठता है के लोग क्या सोचेंगे,
तुम्हें भी तो मंज़ूर न होगा और सोच यही परेशान करती है मुझे,
बस थोड़ा साथ तुम देते तो सुकून का समन्दर मैं बहा लाती शांति से

Mansi believes that as life she too is hard to be described easily.

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